आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Friday, July 11, 2008

मुक्तक ......

अगर जो ये परिंदा है , चहकता क्यों नहीं बोलो
अगर ये फूल है तो फ़िर महकता क्यों नहीं बोलो
हमारी ही तरह खुदको अगर इन्सान कहता है
किसी का दिल दुखाने में हिचकता क्यों नहीं बोलो

डॉ उदय 'मणि' कौशिक

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

उदय जी,सुन्दर मुक्तक है।

डा ’मणि said...

BAHUT DHANYAWAD PARAMJEET ,AAGE BHI ISEE TARAH SAKRIYA JUDAV BANAYE RAKHENGE , ISEE KAMNA KE SAATH
DR UDAY 'MANI' KAUSHIK
MOB. 94142-60806

Dr Rajeev Khanna said...

hi uday, i just saw the blog Ravin told me about it . good job yaar !!! but u still need to make some changes on it .. otherwise it is great to read uncle's poems again on blog ( yours also )

Rajeev