आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Monday, August 4, 2008

मुक्तक ...

हर सिम्त लूट -मार ,गबन देख रहा हूँ
माथे पे हिमालय के शिकन देख रहा हूँ
जम्हूरियत का दौर है क्या कह रहे है आप
मैं गोलियों के खूब चलन देख रहा हूँ .....