आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Wednesday, December 3, 2008

राजधानी चुप रही ..

किसलिए सारे जावानों की जवानी चुप रही
क्यों हमारी वीरता की हर कहानी चुप रही
आ गया है वक्त पूछा जाय आख़िर किसलिए
लोग चीखे , देश रोया , राजधानी चुप रही

डॉ . उदय 'मणि '