आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Monday, March 16, 2009

जाता नही जहन से , पुराना मकान वो



दुनिया था हमारी वो , हमारा जहान वो
लगता था हमें आन-बान ,और शान वो
होने को बडा है ये , नया घर बहुत मगर
जाता नही जहन से , पुराना मकान वो



डा उदय ’मणि’ कौशिक