आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Thursday, March 12, 2009

ये हवाओं के भरोसे पर नहीं है - मुक्तक


पेट खाली , तन उघाडा , घर नहीं है
देख लो फ़िर भी झुकाया सर नहीं है
सब चिरागों से अलग है , ये चिराग
ये हवाओं के भरोसे पर नहीं है

डा उदय मणि