आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Monday, March 30, 2009

तुम्हारी आंख मे आंसू खराब लगते हैं - मुक्तक

सभी साथियों को सादर अभिवादन
पिछले एक सप्ताह से एक चिकित्स्कीय कार्यक्रम

और विश्व रंगमंच दिवस पे यहां आयोजित

तीन दिवसीय कर्यक्रम मे व्यस्तता रही ,

लिखने मे छुट्पुट ही आ पाया
उसी मे से एक मुक्तक देखियेगा -

तुम्हारे होठ मुकम्मल गुलाब लगते हैं
तुम्हारे बाल गज़ल की किताब लगते हैं
तुम्हें हमारी कसम है उदास मत होना
तुम्हारी आंख मे आंसू खराब लगते हैं

डा उदय ’मणि’