सभी साथियों को सादर अभिवादन
पिछले एक सप्ताह से एक चिकित्स्कीय कार्यक्रम
और विश्व रंगमंच दिवस पे यहां आयोजित
तीन दिवसीय कर्यक्रम मे व्यस्तता रही ,
लिखने मे छुट्पुट ही आ पाया
उसी मे से एक मुक्तक देखियेगा -
तुम्हारे होठ मुकम्मल गुलाब लगते हैं
तुम्हारे बाल गज़ल की किताब लगते हैं
तुम्हें हमारी कसम है उदास मत होना
तुम्हारी आंख मे आंसू खराब लगते हैं
डा उदय ’मणि’