आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Friday, November 28, 2008

मुक्तक


छुपाओ मत जमाने को सुलगते बाग़ दिखने दो
दिलों में आग है तो फ़िर दिलों की आग दिखने दो
हकीकत अब सभी की सामने आनी जरूरी है
कहाँ बेदाग है दामन कहाँ पे दाग दिखने दो

Sunday, November 16, 2008

हम साफ़ देखते हैं .... ( ग़ज़ल)

जागीर मत समझना , तुम भूलकर शहर को
हम साफ़ देखते हैं , बदलाव की लहर को

नाजुक बना लिए हैं , हम सब ने पाँव अपने
बेकार कोसते हैं , हम लोग दोपहर को

किसने कहा हवा में , बेहद जहर मिला है
बरसों से खा रहे हैं , हम लोग इस जहर को

ये हुक्म हो चुका है, तुम ख़ुद चुनाव कर लो
या रख सकोगे धड को , या रख सकोगे सर को

उसके ही चूमती है , ख़ुद पाँव कामयाबी
जिसने मिटा दिया है , नाकामियों के डर को

ये सोच कर सभी को हँसना सिखा रहा था
कुछ दिन तो याद रक्खे , दुनिया मेरे असर को

डॉ उदय ' मणि '

Wednesday, November 5, 2008

दो- मुक्तक

सभी के सामने दलदल को, जो दलदल बताता है
जमाना आजकल उसको, बड़ा पागल बताता है
किसी की याद ने काफ़ी , रुलाया है तुम्हें शायद
तुम्हारी आँख का फैला , हुआ काजल बताता है

एवं
नहीं है चीज़ रखने की ,जो बच्चे साथ रखते हैं
खिलौनो के दिनो मे बम , तमन्चे साथ रखते हैं
कहीं बचपन न खो जाए हमारा इसलिए हम तो
अभी तक जेब मे दो चार ' कन्चे ' साथ रखते हैं
डॉ। उदय ' मणि '

कुछ मुक्तक .... दीपावली पर

कुछ मुक्तक .... दीपावली पर लिखने मे आए
( इस बार दीपावली से कुछ ही दिनो पहले , बिहार , उड़ीसा , और बल्कि पूरे पूर्वोत्तर मे भयंकर बाढ़ का प्रकोप रहा , तो मान मे आया, कि )

" दें रत जगमगाती , और खुशनुमा सहर दें
हम उनकी झोलियों मे , खुशियाँ तमाम भर दें
जिनके घरों का सब कुछ सैलाब ले गया है
इस बार की दिवाली ,सब उनके नाम कर दें "

और आज के जिस तरह के हालात है , उनके चलते दिवाली पर एक मुक्तक

" कैसे रखेगा दीपक , कोई कहीं जलाके
कैसे चलाएगा अब , कोई कहीं पटाखे
हर आँख रो रही है , हर दिल सुबक रहा है
इस बार की दिवाली , को खा गये धमाके "

एक मुक्तक प्रार्थना का ...

" जो खो चुकी है वापस , पहचान चाहते हैं
हम हर कहीं पे फिर , से मुस्कान चाहते हैं
वो प्यार, भाई- चारा , भर दे यहाँ दुबारा
बस एक चीज़ तुझसे, भगवान चाहते हैं "

डॉ । उदय ' मणि '
094142 60806
http://mainsamayhun.blogspot.com/

Tuesday, November 4, 2008

सभी साथियों को दीपावली की असीम शुभकामनाओं के साथ ...

" धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाए "

हर-इक फूल पत्ता कली खिलखिलाए
हवा प्यार के गीत से गुनगुनाए
नहा जाए हर इक जगह रोशनी से
धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाए ..

चेहरा सभी का दिखे मुस्कुराता
हर दिल खुशी के तराने सुनाता
कहीं पर ज़रा भी नहीं हो उदासी
कोई आँख दुख से नहीं छलछलाए
धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाए ..

झुके जिसके कारण नज़र ये शरम से
न ऐसा कोई काम हो जाए हम से
कोई बात ऐसी न निकले ज़ुबाँ से
ज़रा सा भी जो दिल किसी का दुखाए
धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाए ..


ग़रीबी न सपने सभी चूर कर दे
न महंगाई मरने पे मजबूर कर दे
न फिरकापरस्ती न नफ़रत की ज्वाला
न बेरोज़गारी कहीं सर उठाए
धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाए ..
डॉ. उदय 'मणि'
http:mainsamayhun.blogspot.com