आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Thursday, July 24, 2008

मुक्तक ...

मौसमों का डर नहीं है अब ज़रा भी
अब नहीं हैं हम कोई बेजान तिनके
वक्त ने चेहरा बदलकर रख दिया है
बन चुके हैं वृक्ष अब पौधे 'विपिन' के
डॉ उदय 'मणि'कौशिक

चुटकुलों से अगर जंग हारी ग़ज़ल ...

एक है रौशनी की पुजारी ग़ज़ल
दूसरी है अंधेरों की मारी ग़ज़ल
हो समझदार तो फर्क ख़ुद देख लो
वो तुम्हारी ग़ज़ल ,ये हमारी ग़ज़ल

इसका हँसना -हंसाना कहाँ गुम गया
इसके चेहरे की रंगत कहाँ खो गयी
बोलिए तो सही क्या हुआ किसलिए
मुस्कुराती नहीं अब तुम्हारी ग़ज़ल

जल्दबाजी हुई आपसे , आपने
वो सफा ठीक तरहा से देखा नहीं
नाम मेरा लिखा था उसी पृष्ठ पर
आपने जिस जगह से उतारी ग़ज़ल

शर्म की बात होगी हमारे लिए
गीत-कविता का मस्तक अगर झुक गया
शर्म की बात होगी हमारे लिए
चुटकुलों से अगर जंग हारी ग़ज़ल

डॉ उदय 'मणि'कौशिक

मुक्तक ....

हमें बहती हवा के साथ में बहना नहीं आता
किसी पे जुल्म होता देख चुप रहना नहीं आता
हमेशा साफ़ कहते है , हमारी खासियत है ये
हमें ज्यादा घुमाकर बात को कहना नहीं आता ...

डॉ उदय 'मणि' कौशिक