सारा तो काम हमने संभाला कमाल है
फ़िर भी तुम्हारे हाथ मे छाला कमाल है
मुद्दत से जो चिराग जले ही नहीं कभी
वो कह रहे हैं खुद को उजाला कमाल है
लाजमी था आज तो मुंह खोलना मगर
सबकी जुबां पे आज भी ताला कमाल है
भरता है जो किसान जमाने के पेट को
मिलता नहीं है उसको निवाला कमाल है
पेडों पे जुल्म वो भी बहुत ढा रहे थे पर
तुमने तो इनको काट ही डाला कमाल है
डा उदय मणि