आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Monday, July 21, 2008

इस धरा की गोद में ..........

इस धरा की गोद में नभ के सितारे भर सकें
दो हमें सामर्थ्य इतना पार सागर कर सकें


ना डरें हम आँधियों से ,ना डरें तूफ़ान से
कश्तियाँ चलती रहें हरदम हमारी शान से
जो कठिन हालात में भी अनवरत जलता रहे
हर किसी के द्वार पे हम दीप ऐसा धर सकें


दो हमें सामर्थ्य इतना पर सागर कर सकें ......

हम मिटा पायें ह्रदय से हर घृणा को ,द्वेष को
हम बदल पायें जरा सा आज के परिवेश को
कर सकें हम स्नेह का संचार अन्तिम श्वास तक
जो दिखे पीड़ित -दुखित ,दुःख - दर्द उसका हर सकें


इस धारा की गोद में नभ के सितारे भर सकें
दो हमें सामर्थ्य इतना पर सागर कर सकें .....

डॉ उदय 'मणि' कौशिक

पूजनीय पिता जी (जनकवि स्व विपिन 'मणि' ) की स्मृति में ,,,




कौन कहता है हमारे , साथ में अब तुम नहीं हो
तुम यहीं हो ,तुम यहीं हो ,तुम यहीं हो ,.......


आपकी खुशबू अभी तक आ रही है हर जगह से
आपको महसूस करते हैं पुरानी ही तरह से
किस घड़ी किस पल बताओ आपको हम भूल पाते
जागते सोते हमेशा आपको हम पास पाते
जिस सहारे की बदौलत आज तक पाया किनारा
आज तक भी मिल रहा है उँगलियों का वो सहारा
साफ सुनते हैं सभी हम हर दिवस में हर निशा में

आपकी आवाज अब तक गूंजती है हर दिशा में


आप हो आकाश सबका ,आप हम सब की जमीं हो
तुम यहीं हो , तुम यहीं हो , तुम यहीं हो ,.........


गर न होते आप कैसे ये चमन गुलजार होता
किस तरह हंसती हवाएं खुशनुमा संसार होता
किस तरह खिलते यहाँ पर फूल कलियाँ मुस्कुराती
सिर्फ सन्नाटा नज़र आता जहाँ तक आँख जाती
आंसुओं की धार बहती , होठ सबके थरथराते
कोयलों के कंठ से फ़िर गीत कैसे फूट पाते
किस तरह से दीप जलते दिख रहे होते यहाँ पर
फैल जाते घोर तं के पांव सारी ही जगह पर


आप हो मुस्कान सबकी ,आप हम सबकी हँसी हो

तुम यहीं हो , तुम यहीं हो , तुम यहीं हो ,...........

आपके दम से अभी तक कंपकंपी है बरगदों में
बिजलियाँ गिरती नहीं हैं पेड़ पौधों की जदों में
दम नहीं है आँधियों का , भूलकर इस ओर आयें
दम नहीं है नागफ़णियों का जरा भी सर उठायें
आपका हर इक इशारा रुख हवा का मोड़ता है
आपका साहस रगों में खून बनकर दौड़ता है
आपकी हर सीख देखो सत्य का ध्वज बन चुकी है
आपने जो आग बोई आज सूरज बन चुकी है
आंसुओं को पोंछ देती आपकी वो खिलखिलाहट
कौन भूलेगा बताओ आपकी वो जगमगाहट
इस उजाले को हमेशा याद रक्खेगा ज़माना
मौत के बस में नहीं है रौशनी को मर पाना


आप हो सांसें हमारी , हम सभी की जिंदगी हो

तुम यहीं हो ,तुम यहीं हो , तुम यहीं हो, ...........

डॉ .उदय 'मणि 'कौशिक