आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Thursday, April 9, 2009

कहूं गर आज महफ़िल मे ...

कहूं गर आज महफ़िल मे , सहे कितने सितम दिल ने
नहीं मुमकिन बयां इसकी , सही मैं दासतां कर दू

हुआ नाकाम ही अक्सर , जहां की ठोकरें खाकर

न अब ये वक्त पे हंसता , न गम के दौर मे रोता
परेशां हूं मैं खुद इससे , करूं किससे गिला शिकवा
न ये दुनिया मेरी सुनती , न अब ये दिल मेरी सुनता
अगर टूटे हुये दिल का , नजारा खुद करे दुनिया
मैं धोकर जख्म अश्कों से जहां के रूबरू कर दूं

कहूं गर आज महफ़िल मे , सहे कितने सितम दिल ने

नहीं मुमकिन बयां इसकी , सही मैं दास्तां कर दू

पिलाया गम इसे अक्सर , सुकूं का नाम ले लेकर

सदा ही दर्द बख्शा है , इसे बेदर्द दुनिया ने
सताया आज तक इसको , वफ़ा का नाम ले लेकर
मिलाया खाक मे देखो , इसी बेदर्द दुनिया ने
यकीं आयेगा तब उनको , जो आंखें फ़ेर बैठे हैं
अगर मैं सामने उनके , शिकस्ता दिल अभी कर दूं

कहूं गर आज महफ़िल मे , सहे कितने सितम दिल ने

नहीं मुमकिन बयां इसकी , सही मैं दास्तां कर दूं