आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Wednesday, December 31, 2008

सभी मित्रो व् साथियों को नव वर्ष की अनन्य शुभकामनाएं

सभी साथियों

एवं समस्त मित्रों

को

नव - वर्ष की

अनन्य शुभकामनाएं

" जहां पर भी अंधेरा हो , खुशी के दीप जल जायें
दुखों की बर्फ़ के सारे , जमे पर्वत पिघल जायें
भरा हो हर्ष से नव-वर्ष का, हर दिन हर इक लम्हा
सभी की आंख के सपने , हकीकत मे बदल जायें "

डा. उदय ’ मणि ’ कौशिक
एवं
परिवार

Thursday, December 4, 2008

घरों मे बात करने से , ये मसले हल नही होंगे "

" पडेगा हम सभी को अब , खुले मैदान मे आना
घरों मे बात करने से , ये मसले हल नही होंगे
"

डा. उदय ’मणि ’

खून से लथपथ न हों अखबार तो...

खून से लथपथ न हों अखबार तो...


मौत की खबरें न हों दो चार तो
ना दिखें चलते हुये हथियार तो
पढ के लगते ही नहीं के पढ लिये
खून से लथपथ न हों अखबार तो


डा. उदय मणि

Wednesday, December 3, 2008

राजधानी चुप रही ..

किसलिए सारे जावानों की जवानी चुप रही
क्यों हमारी वीरता की हर कहानी चुप रही
आ गया है वक्त पूछा जाय आख़िर किसलिए
लोग चीखे , देश रोया , राजधानी चुप रही

डॉ . उदय 'मणि '

Tuesday, December 2, 2008

एक मुक्तक .. ( मुंबई के घटना क्रम पे )

हर दिल मे हर नज़र मे , तबाही मचा गये
हँसते हुए शहर में , तबाही मचा गए
हम सब तमाशबीन बने देखते रहे
बाहर के लोग घर में , तबाही मचा गए

हमने तुमको दिल्ली दी थी ,हमको दिल्ली वापस दो

सारा बचपन ,खेल खिलौने , चिल्ला-चिल्ली वापस दो
छोडो तुम मैदान हमारा , डन्डा - गिल्ली वापस दो
ऐसी - वैसी चीजें देकर ,अब हमको बहलाओ मत
हमने तुमको दिल्ली दी थी ,हमको दिल्ली वापस दो

डा. उदय ’मणि’