आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Wednesday, July 23, 2008

जमी है बर्फ बरसों से ... ( ग़ज़ल )

जमी है बर्फ बरसों से , ज़रा सी तो पिघल जाए
दुआएं कीजिये कुछ देर को सूरज निकल जाए

किसी के खौफ से कोई ,यहाँ कुछ कह नहीं पाता
मगर सब चाहते तो हैं ,कि ये मौसम बदल जाए

करो श्रृंगार धरती का , इसे इतना हरा कर दो
तबीयत बादलों की आप ही इसपे मचल जाए

अँधेरा रह नहीं सकता ,किसी भी हाल में बिल्कुल
अगर सबकी निगाहों में , सुबह का ख्वाब पल जाए

बहुत ग़मगीन है माहौल ,कुछ ऐसा करो जिस से
तुम्हारा दिल बहल जाए ,हमारा दिल बहल जाए
डॉ उदय 'मणि' कौशिक

जानते हैं हम ....( ग़ज़ल )

हमारा फन अभी तक भी, पुराना जानते हैं हम
जमाने दोस्ती करके , निभाना जानते हैं हम


किसी भूचाल से इनमे , दरारें पड़ नहीं सकती
अभी तक इस तरह के घर, बनाना जानते हैं
हम

उठा पर्वत उठाये जा , हमें क्या फर्क पड़ता है
इशारों से पहाडों को , गिराना जानते हैं हम


हमारी बस्तियों में तुम , अँधेरा कर न पाओगे
मशालें खून से अपने जलाना , जानते हैं हम


बरसती आग से हमको , जरा भी डर नहीं लगता
कड़कती धूप में बोझा , उठाना जानते हैं हम


हवाएं तेज हैं तो क्या , हमारा क्या बिगाडेंगी
पतंगें आँधियों में भी , उडाना जानते हैं हम


जरूरत ही नहीं पड़ती , हमें मन्दिर में जाने की
अगर मरते परिंदे को , बचाना जानते हैं हम ........


डॉ उदय 'मणि'कौशिक

आपकी सक्रिय प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में ...
डॉ उदय 'मणि'कौशिक
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