हमारा फ़न अभी तक भी पुराना जानते हैं हम
जमाने , दोस्ती करके , निभाना जानते हैं हम
किसी भूचाल से जिनमे दरारें पड नही पायें
अभी तक इस तरह के घर बनाना जानते हैं हम
उठा पर्वत उठाये जा , हमे क्या फ़र्क पडता है
इशारो से पहाडों को , गिराना जानते हैं हम
हमारी बस्तियों मे तुम , अंधेरा कर न पाओगे
मशालें खून से अपने , जलाना जानते हैं हम
बरसती आग से हमको जरा भी डर नही लगता
कडकती धूप मे बोझा , उठाना जानते हैं हम
हवायें तेज हैं तो क्या , हमारा क्या बिगाडेंगी
पतंगें आंधियों मे भी , उडाना जानते हैं हम
जरूरत ही नहीं पडती हमें मंदिर मे जाने की
अगर मरते परिंदे को , बचाना जानते हैं हम
डा उदय मणि कौशिक