आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Sunday, March 22, 2009

अगर मरते परिंदे को , बचाना जानते हैं हम ..गज़ल

हमारा फ़न अभी तक भी पुराना जानते हैं हम

जमाने , दोस्ती करके , निभाना जानते हैं हम

किसी भूचाल से जिनमे दरारें पड नही पायें

अभी तक इस तरह के घर बनाना जानते हैं हम

उठा पर्वत उठाये जा , हमे क्या फ़र्क पडता है

इशारो से पहाडों को , गिराना जानते हैं हम

हमारी बस्तियों मे तुम , अंधेरा कर न पाओगे

मशालें खून से अपने , जलाना जानते हैं हम

बरसती आग से हमको जरा भी डर नही लगता

कडकती धूप मे बोझा , उठाना जानते हैं हम

हवायें तेज हैं तो क्या , हमारा क्या बिगाडेंगी

पतंगें आंधियों मे भी , उडाना जानते हैं हम

जरूरत ही नहीं पडती हमें मंदिर मे जाने की

अगर मरते परिंदे को , बचाना जानते हैं हम

डा उदय मणि कौशिक

इशारे कम समझता हूं - मुक्तक

मै चंदा कम समझता हूं , सितारे कम समझता हूं

मैं रंगत कम समझता हूं, नजारे कम समझता हूं

उधर वो बोलता कम है नजर से बात करता है

इधर मेरी मुसीबत मैं , इशारे कम समझता हूं

डा उदय मणि