सादर अभिवादन
कल रात एक गज़ल के 4 - 5 शेर हुये हैं
सबसे पहले आप के साथ ही बांट रहा हू
देखियेगा ..
रोटी का चाहिये , न मुझे घर का चाहिये
लेकिन मुझे हिसाब, कटे सर का चाहिये
कमतर से दोस्ती मे शिकायत नहीं मुझे
दुश्मन तो मगर मुझको,बराबर का चाहिये
ऐसी लहर उठाये जो दुनिया को हिला दे
दर्जा अगर किसी को , समन्दर का चाहिये
बदला है क्या बताओ, संभलने के वास्ते
हमको सहारा आज भी, ठोकर का चाहिये
उनसे कहो कि हमको बुलाया नहीं करें
जिनको तमाशा मंच पे , जोकर का चाहिये
सादर
डा. उदय मणि
नव वर्ष २०२४
2 months ago