आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Friday, March 13, 2009

दुश्मन तो मगर मुझको,बराबर का चाहिये ....गज़ल

सादर अभिवादन

कल रात एक गज़ल के 4 - 5 शेर हुये हैं
सबसे पहले आप के साथ ही बांट रहा हू

देखियेगा ..

रोटी का चाहिये , न मुझे घर का चाहिये
लेकिन मुझे हिसाब, कटे सर का चाहिये

कमतर से दोस्ती मे शिकायत नहीं मुझे
दुश्मन तो मगर मुझको,बराबर का चाहिये


ऐसी लहर उठाये जो दुनिया को हिला दे
दर्जा अगर किसी को , समन्दर का चाहिये


बदला है क्या बताओ, संभलने के वास्ते
हमको सहारा आज भी, ठोकर का चाहिये


उनसे कहो कि हमको बुलाया नहीं करें
जिनको तमाशा मंच पे , जोकर का चाहिये


सादर
डा. उदय मणि