आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Tuesday, July 22, 2008

पूजनीय पिताजी (जनकवि स्व. विपिन 'मणि) की पुण्य स्मृति मे


उठा कर हाथ हर कोई यही फरियाद करता है
दुबारा भेज उसको जो चमन आबाद करता है
ज़माने के लिए तुमने लगा दी जान की बाजी
तभी तो आज तक तुमको जमाना याद करता है ....


हमेशा वक्त को अपने इशारों पर नचाया था
लगा आवाज शब्दों से ज़माने को जगाया था
हवाओं-आँधियों ,तूफ़ान में चलते रहे हरदम
न जाने आपको चलना भला किसने सिखाया था ....


यहाँ पे मौसमों का आज वो उत्पात थोडी है
यहाँ पे आजकल उतनी कठिन बरसात थोडी है
किसी का दम नहीं है जो मुकाबिल चाल को रक्खे
'समय' के नाम से जीना हँसी की बात थोडी है ....


बगावत जब जरूरी हो ,नहीं डरना बगावत से
समय का सामना करना बहुत पुरजोर ताकत से
हमेशा फर्ज को तुमने उसूलों सा निभाया था
तभी तो वक्त लेता है तुम्हारा नाम इज्जत से.....

डॉ उदय 'मणि'कौशिक

जनकवि स्व . श्री विपिन 'मणि' ...........संक्षिप्त जीवन परिचय

प्रवास
: 12 दिसम्बर 1948 से 23 अगस्त 2002
शिक्षा
: उच्च माध्यमिक स्कूली शिक्षा
कार्यक्षेत्र
:उत्पादन के क्षेत्र में 35 वर्ष उल्लेखनीय दक्षता से कार्य करने के पश्चात् , शिफ्ट इंजिनियर - अ के उच्च तकनीकी पद से स्वैच्छिक सेवानिवृति्
:साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सृजनशीलता के बहुआयामी उन्नयन की गतिविधियाँ
:जनवादी साहित्यिक अभियान के अग्रणी पुरोधा
:एक दशक तक जनवादी लेखक संघ के जिलाध्यक्ष एवं जलेस प्रकाशन तथा सहयोगी प्रकाशन योजना के संस्थापक सदस्य
रहे
अभिरुचियाँ
: रंगमंच के बेजोड़ कलाकार
:कबड्डी के स्टेट प्लेयर
:साहित्यिक - सांस्कृतिक प्रतियोगितओं में मानक पुरुस्कार विजेता रहे
:पीडितों की मदद के लिए हर प्रकार से जोखिम उठाना
:मंचों के लोकप्रिय , लाडले , एवं ओजस्वी कवि

मुक्तक...

समंदर पार करने का जिगर इतना नहीं होता
हवाओं आँधियों से मैं निडर इतना नहीं होता
तुम्हारे साथ के दम पे यहाँ तक आ गया वरना
किसी भी हाल में मुझसे सफर इतना नहीं होता
डॉ उदय 'मणि'कौशिक

मुक्तक .......

हमारी कोशिशें हैं इस, अंधेरे को मिटाने की
हमारी कोशिशें हैं इस, धरा को जगमगाने की
हमारी आँख ने काफी, बड़ा सा ख्वाब देखा है
हमारी कोशिशें हैं इक, नया सूरज उगाने की ..........


डॉ उदय 'मणि' कौशिक