आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Saturday, July 12, 2008

बहुत बदलाव आएगा ...( ग़ज़ल )

न होते आज तक हम लोग भूखे और प्यासे से
बहलना छोड़ देते हम अगर झूठे दिलासे से

तमाशा कह रहे हो तो ,तमाशा ही सही लेकिन
बहुत बदलाव आएगा , हमारे इस तमाशे से

अभी हंस लो हमें छुटपुट पटाखे सा बताकर तुम
तुम्हारी धज्जियाँ उड़ जाएँगी इनके धमाके से

हमें झोंका समझते हो अभी तक आपने शायद
किले गिरते नहीं देखे , हवाओं के तमाचे से ..........

डॉ उदय 'मणि' कौशिक
94142 - 60806

5 comments:

Advocate Rashmi saurana said...

sundar gajal ko padhane ke liye aabhar.

समयचक्र said...

aaj apna samay n sahi kal
fir kal hamara samay ayenga.
ek n ek din fir badalav ayega
tamasho se kuch to badalav ayenge .

bahut badhiya .daktar uday ji badhai.

परमजीत सिहँ बाली said...

गज़ल पढ कर आनंद आ गया।बहुत बढिया गजल है।बधाई।

डा ’मणि said...

प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद् रश्मि जी,
ये सक्रियता आगे भी बनाये रक्खेंगी इसी कामना के साथ
डॉ उदय 'मणि' कौशिक

रश्मि प्रभा... said...

मुझे भी है विश्वास बदलाव का,
हमारी कोशिशें लायेंगी रंग,
बहुत अच्छा लगा है आपको पढना.

आपने जो कविता मुझे post की है,वो काफी अच्छी है,
आपसे परिचय होना अच्छा हुआ...
ब्लॉग add ठीक से नहीं दिया आपने,
मेरे rasprabha@gmail.com पर इसे भेज दें