" कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप"
आज श्रेश्ठ व्यंगकार डा योगेन्द्र मणि जी के एक व्यंग की
पे पंक्तिया काफ़ी देर जहन में घूमती रही
फ़िर जो कुछ घूम रहा था उससे मैने
इन दो पंक्तियो को इस तरह से बढाने की कोशिश की है
कि
कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप
दुनिया भर की बाते छोड
जैसे भी हो कुर्सी पा
कुर्सी होगी तो सबको
पुण्य लगेंगे तेरे पाप
कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप
उसके आगे पीछे ही
सारी दुनिया होती है
जिसके सिर पे लगी दिखे
ऊंची कुर्सी वाली छाप
कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप
किसम किसम के देखे जब
तब जाकर ये पता चला
सबसे ज्यादा जहरीले
होते हैं संसद के सांप
कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप
डा उदय मणि