आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Thursday, March 5, 2009

दुनियादारी सीख गया - एक मुक्तक

दिल मे नफ़रत मुंह पे बातें , प्यारी प्यारी सीख गया
सारी तिकडम , तौर - तरीके सब अय्यारी सीख गया
बुरा नहीं है अच्छा है ये जो कुछ मेरे साथ हुआ
इसके कारण मैं भी थोडी , दुनिया दारी सीख गया

सादर
डा. उदय ’ मणि’
काफी समय बाद एक स्केच बनाने में आया है उसे आप सब के साथ बाँट रहा हूँ इस बार ,
ये दरअसल एक प्रसिद्द रूसी मूर्तिकार इवान शद्र की बनायी बहुत प्रसिद्द मूर्ती का स्केच

मुक्तक

बीते कुछ दिन मे हमारे आस पास आतंक और घ्रणा का बडा दुखद सा वातावरण रहा
और , कल पाकिस्तान की अति दुखद घटना के बाद एक न्यूज चैनल पे बहुत छोटे बच्चों को हथियारों सहित दिखया , उस पे एक मुक्तक सा लिखने मे आया , देखियेगा

" जिनकी आंखों मे तितली या तोते,चिडिया होने थे
जिन बच्चों के तन पे कपडे बढिया-बढिया होने थे
उनके हाथों मे बन्दूकें , बम , पिस्तौलें थमा दिये
जिन हाथों मे खेल खिलौने , गुड्डे , गुडिया होने थे "


सादर
डा. उदय ’ मणि’