आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Sunday, March 15, 2009

मेरी नजर किसी के , सहारे पे नही है - मुक्तक



सूरज पे नहीं चांद पे , तारे पे नहीं है
चौखट पे किसी या किसी द्वारे पे नही है
है अपने बाजुओं पे , भरोसा बहुत मुझे
मेरी नजर किसी के , सहारे पे नही है

डा. उदय मणि

कभी अपने गिरेबानों के अन्दर क्यों नही जाते - ग़ज़ल


हमेशा घर पे रहते हो , कहीं पर क्यों नही जाते
बताओ तो सही तुम लोग, बाहर क्यों नही जाते

अगर ये जिन्दगी इतनी , अधिक बेकार लगती है
भला क्यों जी रहे हो तुम, भला मर क्यों नही जाते

यहां आकर तुम्हें सब कुछ , समझ मे आ गया होगा
यहां जो लोग आते है , वो आकर क्यों नही जाते

जहां से हो रहे है सब , इशारे इस तबाही के
हमारे हाथ के पत्थर , वहां पर क्यों नहीं जाते

तुम्हारा घर नही है या , तुम्हारे घर नही कोई
अगर ऐस नही है तो , भला घर क्यों नहीं जाते

’उदय’ पर उंगलियां तो तुम , बहुत हंसकर उठाते हो
कभी अपने गिरेबानों के अन्दर क्यों नही जाते

सादर
डा उदय मणि