आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Sunday, November 16, 2008

हम साफ़ देखते हैं .... ( ग़ज़ल)

जागीर मत समझना , तुम भूलकर शहर को
हम साफ़ देखते हैं , बदलाव की लहर को

नाजुक बना लिए हैं , हम सब ने पाँव अपने
बेकार कोसते हैं , हम लोग दोपहर को

किसने कहा हवा में , बेहद जहर मिला है
बरसों से खा रहे हैं , हम लोग इस जहर को

ये हुक्म हो चुका है, तुम ख़ुद चुनाव कर लो
या रख सकोगे धड को , या रख सकोगे सर को

उसके ही चूमती है , ख़ुद पाँव कामयाबी
जिसने मिटा दिया है , नाकामियों के डर को

ये सोच कर सभी को हँसना सिखा रहा था
कुछ दिन तो याद रक्खे , दुनिया मेरे असर को

डॉ उदय ' मणि '