आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Wednesday, November 5, 2008

दो- मुक्तक

सभी के सामने दलदल को, जो दलदल बताता है
जमाना आजकल उसको, बड़ा पागल बताता है
किसी की याद ने काफ़ी , रुलाया है तुम्हें शायद
तुम्हारी आँख का फैला , हुआ काजल बताता है

एवं
नहीं है चीज़ रखने की ,जो बच्चे साथ रखते हैं
खिलौनो के दिनो मे बम , तमन्चे साथ रखते हैं
कहीं बचपन न खो जाए हमारा इसलिए हम तो
अभी तक जेब मे दो चार ' कन्चे ' साथ रखते हैं
डॉ। उदय ' मणि '

कुछ मुक्तक .... दीपावली पर

कुछ मुक्तक .... दीपावली पर लिखने मे आए
( इस बार दीपावली से कुछ ही दिनो पहले , बिहार , उड़ीसा , और बल्कि पूरे पूर्वोत्तर मे भयंकर बाढ़ का प्रकोप रहा , तो मान मे आया, कि )

" दें रत जगमगाती , और खुशनुमा सहर दें
हम उनकी झोलियों मे , खुशियाँ तमाम भर दें
जिनके घरों का सब कुछ सैलाब ले गया है
इस बार की दिवाली ,सब उनके नाम कर दें "

और आज के जिस तरह के हालात है , उनके चलते दिवाली पर एक मुक्तक

" कैसे रखेगा दीपक , कोई कहीं जलाके
कैसे चलाएगा अब , कोई कहीं पटाखे
हर आँख रो रही है , हर दिल सुबक रहा है
इस बार की दिवाली , को खा गये धमाके "

एक मुक्तक प्रार्थना का ...

" जो खो चुकी है वापस , पहचान चाहते हैं
हम हर कहीं पे फिर , से मुस्कान चाहते हैं
वो प्यार, भाई- चारा , भर दे यहाँ दुबारा
बस एक चीज़ तुझसे, भगवान चाहते हैं "

डॉ । उदय ' मणि '
094142 60806
http://mainsamayhun.blogspot.com/