आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Friday, July 11, 2008

मुक्तक ......

अगर जो ये परिंदा है , चहकता क्यों नहीं बोलो
अगर ये फूल है तो फ़िर महकता क्यों नहीं बोलो
हमारी ही तरह खुदको अगर इन्सान कहता है
किसी का दिल दुखाने में हिचकता क्यों नहीं बोलो

डॉ उदय 'मणि' कौशिक

मुक्तक .....

यहाँ के हर मुसाफिर को मुहब्बत की डगर दे दे
अगर तू दे सके , मेरी दुआओं में असर दे दे
जिसे जो चाहिए उसको अता कर शौक से लेकिन
मुझे रोते हुए दिल को हँसाने का हुनर दे दे ..........


डॉ उदय 'मणि' कौशिक

मुक्तक ......

हवा में खुशबुओं को घोलने का हौसला रक्खो
किसी भी हाल में सच बोलने का हौसला रक्खो
अँधेरे की शिकायत मत करो या तो जरा सी भी
नहीं तो खिड़कियों को खोलने का हौसला रक्खो
डॉ , उदय 'मणि ' कौशिक