सारा तो काम हमने संभाला कमाल है
फ़िर भी तुम्हारे हाथ मे छाला कमाल है
मुद्दत से जो चिराग जले ही नहीं कभी
वो कह रहे हैं खुद को उजाला कमाल है
लाजमी था आज तो मुंह खोलना मगर
सबकी जुबां पे आज भी ताला कमाल है
भरता है जो किसान जमाने के पेट को
मिलता नहीं है उसको निवाला कमाल है
पेडों पे जुल्म वो भी बहुत ढा रहे थे पर
तुमने तो इनको काट ही डाला कमाल है
डा उदय मणि
8 comments:
सारा तो काम हमने संभाला कमाल है
फ़िर भी तुम्हारे हाथ मे छाला कमाल है
-जबरदस्त!
सारा तो काम हमने संभाला कमाल है
फ़िर भी तुम्हारे हाथ मे छाला कमाल है
बहुत खूब भाई...
क्या काफ़िया रदीफ़ निकाला कमाल है !!
नैतिकता मौन हैं ,सह्रदयता गौण हैं .
कमाल ही कमाल है !!!!!
Socha tha aap ek acchhe doctor hain,
aap to ek acchhe kavi bhi hain,
KAMAAL HAI !!
इतना ज़बर्दस्त लिख डाला कमाल है।
बहुत उम्दा ग़ज़ल प्रस्तुति!
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