सभी साथियों को सादर अभिवादन
पिछले एक सप्ताह से एक चिकित्स्कीय कार्यक्रम
और विश्व रंगमंच दिवस पे यहां आयोजित
तीन दिवसीय कर्यक्रम मे व्यस्तता रही ,
लिखने मे छुट्पुट ही आ पाया
उसी मे से एक मुक्तक देखियेगा -
तुम्हारे होठ मुकम्मल गुलाब लगते हैं
तुम्हारे बाल गज़ल की किताब लगते हैं
तुम्हें हमारी कसम है उदास मत होना
तुम्हारी आंख मे आंसू खराब लगते हैं
डा उदय ’मणि’
6 comments:
बहुत खूब डाक्टर साहब
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
waah behtarin
बालों की ग़ज़ल की किताब से तुलना पहले कहीं पढ़ी हो याद नहीं आता...बहुत अच्छा मुक्तक उदय जी...बधाई.
नीरज
Waah !!! Waah !!!
प्रीतम के मन की बात।
"खून ही का नहीं,
पानी का भी रिश्ता होता है,
जब किसी की आँख में,
आंसू देख
कोई रोता है !"
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