आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा
आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा
आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............
जनकवि स्व .विपिन 'मणि '
ये हवाओं के भरोसे पर नहीं है - मुक्तक
पेट खाली , तन उघाडा , घर नहीं है देख लो फ़िर भी झुकाया सर नहीं हैसब चिरागों से अलग है , ये चिरागये हवाओं के भरोसे पर नहीं है डा उदय मणि
3 comments:
एक लाजवाब खुद्दार मुक्तक...बहुत ही खूब उदय साहेब.
नीरज
विरले ही विरासत को बढा पाए
उन्हीं में नाम एक डॉक्टर उदय आये
आहों कराहों को मिटाने का ये जज्बा
दुआ है नूर "मणि" का और बढ़ जाये
ब्लॉग पर आने ,
अपने ब्लॉग से परिचित कराने के लिए
धन्यवाद
ये हवावों के भरोसे पर नहीं है...
उम्दा रचना !!!
Thanx for your warm words on my blog
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