आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Thursday, August 28, 2008

हवाओं का असर ऐसे चिरागों पर नहीं होता ...



किसी तूफ़ान का जिनके जहन में डर नहीं होता
हवाओं का असर ऐसे चिरागों पर नहीं होता

समय रहते सियासत की शरारत जान ली वरना
किसी का धड नहीं होता किसी का सर नहीं होता

अगर जी - जान से कोशिश करोगे तो मिलेगी ये
सफलता के लिए ताबीज़ या मंतर नहीं होता

किसी की बात को कोई यहाँ तब तक नहीं सुनता
किसी के हाथ में जब तक बड़ा पत्थर नहीं होता

डॉ उदय 'मणि' कौशिक

7 comments:

नीरज गोस्वामी said...

अगर जी - जान से कोशिश करोगे तो मिलेगी ये
सफलता के लिए ताबीज़ या मंतर नहीं होता
उदय जी, बेहतरीन ग़ज़ल और लाजवाब शेर...वाह. दिली दाद कबूल कीजिये.
नीरज

Udan Tashtari said...

समय रहते सियासत की शरारत जान ली वरना
किसी का धड नहीं होता किसी का सर नहीं होता

--बहुत जबरदस्त!!आनन्द आ गया.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत शानदार रचना ! बधाई !

विक्रांत बेशर्मा said...

अगर जी - जान से कोशिश करोगे तो मिलेगी ये
सफलता के लिए ताबीज़ या मंतर नहीं होता
बहुत अच्छा लिखा है आपने!!!!

•๋:A∂i™© said...

Bahut badhiya Dr. sahab...

maza aa gaya..

Ultimate.

राकेश खंडेलवाल said...

सफ़र में चल दिये हैं राह को मंज़िल बना अपनी
कुछ ऐसे राहगीरों का कहीं पर घर नहीं होता

"अर्श" said...

अगर जी - जान से कोशिश करोगे तो मिलेगी ये
सफलता के लिए ताबीज़ या मंतर नहीं होता

motivation dikhata aapki poem me ,sundar rachana hai badhai....

regards
Arsh