आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा
आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा
आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............
जनकवि स्व .विपिन 'मणि '
12 comments:
आत्मालोचना की सुंदर कविता।
बहुत सुन्दर.
क्योंकि हुए हैं हम पत्थर, तो पत्थर कब बदले हैं
सब कुछ देखा और सुना है किन्तु नहीं अनुभूता
भावही हो बिन स्पंदेन प्रतिमा बने खड़े हैं
परिवर्तन कोई कर जाये नहीं किसी का बूता
dil ko chhu lene wali rachna
मगर मैं
कबसे
ऐसा नहीं कर रहा हूँ
जो हूँ वही होने से डर रहा हूँ ..
बहुत कुछ कह डाला इसमें,
काफी अच्छी रचना
बेहतरीन रचना। खासतौर से इन पंक्तियों ने आपकी छटपटाहट को स्वर दिया है-
मगर मैं
कबसे
ऐसा नहीं कर रहा हूँ
जो हूँ वही होने से डर रहा हूँ ..
- इस डर के मारे हुए आप अकेले नहीं हैं मित्र, हम सभी के दिल में कोई न कोई डर घर किए हुए है। जो हमें वास्तविकता से दर रखता है।
प्रोत्साहन के लिए आप सभी का ह्रदय से आभारी हूँ
यही स्नेह बनाए रखें
डॉ . उदय मणि जी, सादर अभिवादन! आपकी रचनाएं बेहद प्रेरक और हौसला देने वाली हैं। उनमें गहराई है, विचार है, आशा है और विश्वास भी है। इन सुंदर रचनाओं के लिए साधुवाद। यूं ही लिखते रहिए.... पुन: धन्यवाद
Bahut Sunder
मगर मैं
कबसे
ऐसा नहीं कर रहा हूँ
जो हूँ वही होने से डर रहा हूँ ..
marmik bhee .
Uday ji, kya baat hai ek badhakar ek rachanaye. likhte rhe.
मगर मैं
कबसे
ऐसा नहीं कर रहा हूँ
जो हूँ वही होने से डर रहा हूँ ..
बहुत सुंदर रचना ! बधाई !
बहुत उम्दा ख्यालात ज़ाहिर किए हैं आपने इन लाइनों में
आपसे गुजारिश है मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
http:/manoria.blogspot.com and kanjiswami.blog.co.in
आपको मेरी ग़ज़लों का भी दीदार हो सकेगा
Post a Comment