आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Sunday, August 3, 2008

कालजयी सृजन के पुरोधा एवं वरिष्ठ जनकवि 'बृजेन्द्र कौशिक जी 'को जन्मदिन पर ....सादर काव्यांजलि

कर रहे हैं आज प्रेषित सब ह्रदय की भावना
दे रहे हैं आज सारे आपको शुभकामना

पूछिए मत किस कदर महकी हुई सी है हवा
है नशे में चूर सी , बहकी हुई सी है हवा
बादलों में इस तरह का दम कभी देखा न था
मुद्दतों से आज सा मौसम कभी देखा न था
लग रहा है आज जैसे हो कोई त्यौहार सा
दे रहे हों मेघ धरती को कोई उपहार सा

हाथ सब अपने उठाकर , सर झुकाकर आज सब
कर रहें हैं आपकी , लम्बी उमर की प्रार्थना ॥

आपके सब गीत - कविता हैं उजाले की किरण
आपके सब शब्द लाते हैं , अनूठा जागरण
आपके अक्षर सभी जलती मशालों की तरह
रौशनी इनकी वजह से है यहाँ पर सब जगह
जगमगाते हैं सितारे आपके विशवास पर
आप सूरज की तरह हो ,शब्द के आकाश पर

आप जैसा शब्द का साधक नहीं है दूसरा
है असंभव आप जैसी , शारदे की साधना

कर रहे हैं आज प्रेषित सब ह्रदय की भावना
दे रहे हैं आज सारे आपको शुभकामना

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बृजेन्द्र जी कौशिक को मेरी ओर से भी जन्म-दिन की बधाई।

राकेश खंडेलवाल said...

गीत जो है ढल गया इक जिस्म में, वह आप हैं
शब्द तम में दीप बन कर जल गया वो आप हैं
आपकी खातिर लिखें क्या ? शब्द तो सब आपके
लेखनी का रूप लेकर लिख रहे जो आप हैं.

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