आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा
आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा
आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............
जनकवि स्व .विपिन 'मणि '
5 comments:
bhut khub. jari rhe.
kya baat hai. bhut sundar. likhte rhe.
बंध गई सीमाओं में जो, रह कहां पाती गज़ल है
साथ चलती वक्त के वो ही कही जाती गज़ल है
हां चुनौती है उतारें आज इसको ज़िन्दगी तक
खो गई लफ़्फ़ाज़ियों में गुनगुनाती जो गज़ल है
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