आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Friday, July 11, 2008

मुक्तक ......

हवा में खुशबुओं को घोलने का हौसला रक्खो
किसी भी हाल में सच बोलने का हौसला रक्खो
अँधेरे की शिकायत मत करो या तो जरा सी भी
नहीं तो खिड़कियों को खोलने का हौसला रक्खो
डॉ , उदय 'मणि ' कौशिक

6 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप की चारों कविताएँ पढ़ीं। मुक्तक सब पर भारी है। मगर उन पर भारी है, भाई विपिन मणि की कविता।

डा ’मणि said...

BAHUT DHANYAWAD ,

डा ’मणि said...

BAHUT DHANYAWAD ....AASHA HAI SNEH AUR MARGDARSHAN KA YE KRAM BANAYE RAKKHENGE

Balendu Sharma Dadhich said...

वाकई बहुत ओजपूर्ण कविता है। बधाई। यदा कदा मतान्तरः एक राजनीतिक ब्लॉग भी पढ़ते रहें।

avinash said...

doctor saheb aap ne apne pitajee ke yaad mai kavita likhi hai ,jo kafhi marmsparhi hai, aur accha laga.

रश्मि प्रभा... said...

sare muktak ek se badhkar ek hain........aapke saath aameen kahti hun,kal hamar hai