आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Monday, March 23, 2009

कल से चार पंक्तियां जहन मे चल रही है एक मुक्तक के रूप मे ,
सबसे पहले आप सब से ही बांट रहा हू , कि -


चले हैं इस तिमिर को हम , करारी मात देने को
जहां बारिश नही होती , वहां बरसात देने को
हमे पूरी तरह अपना , उठाकर हाथ बतलाओ
यहां पर कौन राजी है , हमारा साथ देने को

सादर
डा उदय ’मणि’ कौशिक


3 comments:

अनिल कान्त said...

वीर रस से ओतप्रोत ...अच्छी लगी

संगीता पुरी said...

रचनाएं अच्‍छी लगी ... इंतजार रहेगा आगे भी ।

नीरज गोस्वामी said...

चुनौती पूर्ण आवाहन किया है आपने...बहुत अच्छी रचना...
नीरज