कल से चार पंक्तियां जहन मे चल रही है एक मुक्तक के रूप मे ,
सबसे पहले आप सब से ही बांट रहा हू , कि -
चले हैं इस तिमिर को हम , करारी मात देने को
जहां बारिश नही होती , वहां बरसात देने को
हमे पूरी तरह अपना , उठाकर हाथ बतलाओ
यहां पर कौन राजी है , हमारा साथ देने को
सादर
डा उदय ’मणि’ कौशिक
3 comments:
वीर रस से ओतप्रोत ...अच्छी लगी
रचनाएं अच्छी लगी ... इंतजार रहेगा आगे भी ।
चुनौती पूर्ण आवाहन किया है आपने...बहुत अच्छी रचना...
नीरज
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