आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Sunday, March 15, 2009

मेरी नजर किसी के , सहारे पे नही है - मुक्तक



सूरज पे नहीं चांद पे , तारे पे नहीं है
चौखट पे किसी या किसी द्वारे पे नही है
है अपने बाजुओं पे , भरोसा बहुत मुझे
मेरी नजर किसी के , सहारे पे नही है

डा. उदय मणि

4 comments:

कंचन सिंह चौहान said...

बहुत खूब...!

mehek said...

kya baat hai waah

रंजना said...

सुन्दर रचना ! आभार.

डा ’मणि said...

सादर अभिवादन

कंचन जी, महक जी , रंजना जी

आप सभी ने आशीर्वाद दिया इसके लिये ह्रिदय से आभारी हू
स्नेह बनाये रखियेगा