आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Thursday, October 23, 2008

एक मुक्तक ... आज के दुखद हालात पे संवेदनाओं सहित

सफर में जा रहे हो तो , किसी से बात मत करना
कसम है दोस्ती हरगिज़ ,किसी के साथ मत करना
मैं जब बहार निकलता हूँ , मेरी माँ रोज कहती है
समय से लौट आना तुम , ज़्यादा रात मत करना
डॉ उदय ' मणि '

3 comments:

नीरज गोस्वामी said...

उदय जी आज के हालत पर शशक्त टिप्पणी की है अपने इस मुक्तक के माध्यम से...बहुत खूब...
नीरज

श्रीकांत पाराशर said...

Sahaj saral sabdon men itne saleeke se aapne muktak ke jariye sandesatmak baat rakhi hai ki maza aagaya. bahut khoob.

Udan Tashtari said...

बहुत जबरदस्त!!