अगर अल्फाज अन्दर से निकल कर आ नहीं सकते
नशा बनकर जमाने पर ,कभी वो छा नहीं सकते
बहुत डरपोक हो सचमुच ,तुम्हारा हौसला कम है
किसी भी हाल मैं तुम मंजिलों को पा नहीं सकते
उसे सबकुछ पता है , कौन कैसे याद करता है
किसी छापे -तिलक से तुम उसे बहला नहीं सकते
सुरों की भूलकर इनसे कभी उम्मीद मत करना
समंदर चीख सकते हैं ,समंदर गा नहीं सकते
चुनौती दे रहा हूँ मैं यहाँ के सूरमाओं को
जहाँ पे आ गया हूँ मैं वहां तुम आ नहीं सकते .....
डॉ उदय ' मणि' कौशिक
नव वर्ष २०२४
3 months ago
2 comments:
बहुत बढिया लिखा है-
अगर अल्फाज अन्दर से निकल कर आ नहीं सकते
नशा बनकर जमाने पर ,कभी वो छा नहीं सकते
सुरों की भूलकर इनसे कभी उम्मीद मत करना
समंदर चीख सकते हैं ,समंदर गा नहीं सकते
उदयजी,
सुन्दर अभिव्यक्ति है . अच्छा लगा आपकी रचनायें पढ़ कर. कोटा में रहने वाले साहित्यकार श्री शरद तैलंग और आरसी साहब के साथ आपका नाम भी मित्र साहित्यकारों की सूची में जुड़ गया.
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