आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Sunday, July 27, 2008

एक और आव्हान ...


देख लो नजरें उठाकर हर तरफ़
हो रही हैं साजिशें अलगाव की
गीत - ग़ज़लों के विषय बदलो जरा
अब जरूरत है बहुत बदलाव की ...
डॉ उदय 'मणि' कौशिक

4 comments:

रश्मि प्रभा... said...

ruk sake na koi kadam
yun pukaara aapne,
har gharon se niklenge kadam
rakh hatheli pe apni har saans ko......
saarthak swar

परमजीत सिहँ बाली said...

सार्थक मुक्तक है।बहुत बढिया!

डा ’मणि said...

प्रोत्साहन के लिए बहुत धन्यवाद

संजय शर्मा said...

सामयिक ! और एक सूत्रता में पिरोता अर्थपूर्ण अनिवार्यता का अहसास बखूबी करता है . जारी रहे हम आते रहेंगें
मस्त लिखते है आप.