दुआएं कीजिये कुछ देर को सूरज निकल जाए
किसी के खौफ से कोई ,यहाँ कुछ कह नहीं पाता
मगर सब चाहते तो हैं ,कि ये मौसम बदल जाए
करो श्रृंगार धरती का , इसे इतना हरा कर दो
तबीयत बादलों की आप ही इसपे मचल जाए
अँधेरा रह नहीं सकता ,किसी भी हाल में बिल्कुल
अगर सबकी निगाहों में , सुबह का ख्वाब पल जाए
बहुत ग़मगीन है माहौल ,कुछ ऐसा करो जिस से
तुम्हारा दिल बहल जाए ,हमारा दिल बहल जाए
डॉ उदय 'मणि' कौशिक
6 comments:
किसी के खौफ से कोई ,यहाँ कुछ कह नहीं पाता
मगर सब चाहते तो हैं ,कि ये मौसम बदल जाए
very nice. badhiya. likhte rhe.
अच्छा लिखा है
किसी के खौफ से कोई ,यहाँ कुछ कह नहीं पाता
मगर सब चाहते तो हैं ,कि ये मौसम बदल जाए
उदयजी,
बहुत खूबसूरती से लिखा है. दाद कबूलें
मैं क्या कहूँ....आपकी हर रचना अन्दर से बोलती है,
यानि उसके हर शब्द बोलते हैं,
लिखने को तो सब लिखते हैं,
पर ये अंदाज कुछ हटकर है.......
किसी के खौफ से कोई ,यहाँ कुछ कह नहीं पाता
मगर सब चाहते तो हैं ,कि ये मौसम बदल जाए
किसी के खौफ से कोई ,यहाँ कुछ कह नहीं पाता
मगर सब चाहते तो हैं ,कि ये मौसम बदल जाए
बेहतरीन....उदय भाई....बेहतरीन....हर शेर कामयाब है अपनी बात कहने में...लफ्ज़ और एहसास से लबरेज़ बेहद खूबसूरत ग़ज़ल.
नीरज
स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए आप सभी का आभारी हूँ
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