आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा

आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा


आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा

आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............

जनकवि स्व .विपिन 'मणि '

Saturday, July 19, 2008

है अभी तक रौशनी मद्धम ,हमारे हाथ में ........( ग़ज़ल )


था हवा को मोड़ने , का दम हमारे हाथ में
आज तक भी है वही दम-ख़म हमारे हाथ में

इस जगह पर है अँधेरा , तुम अभी से मत कहो
है अभी तक रौशनी , मद्धम हमारे हाथ में

हम जिधर चाहें वहां पर धूप हो ,बरसात हो
आगया है इस तरह , मौसम हमारे हाथ में

हौसला है आज भी जो ,फाड़ दे आकाश को
साँस बेशक रह गयी है , कम हमारे हाथ में

मर रहे हैं आज वो कैसे 'उदय' के नाम पर
आ गए पूरी तरह हम-दम , हमारे हाथ में

आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में
डॉ उदय 'मणि' कौशिक

3 comments:

आशा जोगळेकर said...

Bahut sunder. parantu pehale sher ki doosari pankti men matra dosh hai lafj jyada hain. Agar aisa likhen

ab tak bhee hai mojood wo hi dum humare hath men

राकेश खंडेलवाल said...

इस जगह पे है अँधेरा , तुम अभी से मत कहो
है अभी तक रौशनी ,मद्धम हमारे हाथ में
समर्थ आत्मविश्वास झलकता है इन अल्फ़ाज़ में

Advocate Rashmi saurana said...

vha bhut badhiya.