आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा
आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा
आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............
जनकवि स्व .विपिन 'मणि '
मुक्तक..
समंदर पार करने का जिगर इतना नहीं होता हवाओं आँधियों से मैं निडर इतना नहीं होता तुम्हारे साथ के दम पे यहाँ तक आ गया वरना किसी भी हाल में मुझसे सफर इतना नहीं होता डॉ उदय 'मणि'कौशिक
2 comments:
बढिया रचनाएं प्रेषित की है। बधाई।
धन्यवाद् बालीजी
यही सक्रिय जुडाव बनाये रखें
डॉ उदय मणि
http://mainsamayhun.blogspot.com
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