आज अपना हो न हो पर ,कल हमारा आएगा
रौशनी ही रौशनी होगी, ये तम छंट जाएगा
आज केवल आज अपने दर्द पी लें
हम घुटन में आज जैसे भी हो ,जी लें
कल स्वयं ही बेबसी की आंधियां रुकने लगेंगी
उलझने ख़ुद पास आकर पांव में झुकने लगेंगी
देखना अपना सितारा जब बुलंदी पायेगा
रौशनी के वास्ते हमको पुकारा जाएगा
आज अपना हो न हो पर कल हमारा आएगा ............
जनकवि स्व .विपिन 'मणि '
Saturday, August 30, 2008
फ़र्ज़ से की है मुहब्बत ...
फ़र्ज़ की खातिर कभी मैं , चैन से सोया नहीं
थी शिकस्ताँ हाल कश्ती , आंधियां थी पुरखतर
मैं ही था चलता रहा जो , हौसला खोया नहीं
मौजे दरिया मुख्तलिफ थी हर तरफ़ गिरदाब थे
मौत बिल्कुल रूबरू थी , फ़िर भी मैं रोया नहीं
हूँ सुखनवर बर्क़ से भी तेज है कुछ चल मेरी
जिंदगी का कोई लम्हा , बैठ कर खोया नहीं
है बहुत उनको तमन्ना उनको तुख्मे गुल मिले
केक्टस बोए जिन्होंने , तुख्मे गुल बोया नहीं
होके सूरज जुल्मतों का साथ दूँ मुमकिन नहीं
रौशनी ही बाँटता हूँ , तुम इसे लो या नहीं
चाहता था टालना फ़िर भी मगर आ ही गया
मेरे सर वो फर्ज भी , जो आपने ढोया नहीं
बात सच मने मेरी कोई ग़ज़ल गोया नहीं
शेख जी पी भी गए और , जाम तक धोया नहीं
खूब है दिल 'विपिन' का हौसला भी आफरीन
नागफनियों से ही खुश है , गुल इसे दो या नहीं
जनकवि स्व. विपिन ‘ मणि ‘
Thursday, August 28, 2008
हवाओं का असर ऐसे चिरागों पर नहीं होता ...
किसी तूफ़ान का जिनके जहन में डर नहीं होता
हवाओं का असर ऐसे चिरागों पर नहीं होता
समय रहते सियासत की शरारत जान ली वरना
किसी का धड नहीं होता किसी का सर नहीं होता
अगर जी - जान से कोशिश करोगे तो मिलेगी ये
सफलता के लिए ताबीज़ या मंतर नहीं होता
किसी की बात को कोई यहाँ तब तक नहीं सुनता
किसी के हाथ में जब तक बड़ा पत्थर नहीं होता
डॉ उदय 'मणि' कौशिक
Friday, August 15, 2008
प्रिय " दीप " को रक्षा - बंधन पर " हम सब " की ओर से , असीम स्नेह के साथ ...
और कुछ है भी नहीं देना हमारे हाथ में
दे रहे हैं हम तुम्हें ये "हौसला " सौगात में
हौसला है ये इसे तुम उम्र भर खोना नहीं
है तुम्हें सौगंध आगे से कभी रोना नहीं
मत समझना तुम इसे तौहफा कोई नाचीज है
रात को जो दिन बना दे हौसला वो चीज है
जब अकेलापन सताए ,यार है ये हौसला
जिंदगी की जंग का हथियार है ये हौसला
हौसला ही तो जिताता ,हारते इंसान को
हौसला ही रोकता है दर्द के तूफ़ान को
हौसले से ही लहर पर वार करती कश्तियाँ
हौसले से ही समंदर पार करती कश्तियाँ
हौसले से भर सकोगे जिंदगी में रंग फ़िर
हौसले से जीत लोगे जिंदगी की जंग फ़िर
तुम कभी मायूस मत होना किसी हालात् में
हम चलेंगे ' आखिरी दम तक ' तुम्हारे साथ में
है अँधेरा आज थोड़ा सा अगर तो क्या हुआ
आ गयी कुछ देर को मुश्किल डगर तो क्या हुआ
दर्द के बादल जरा सी देर में छँट जायेंगे
कल तुम्हारी राह के पत्थर सभी हट जायेंगे
चाहते हो जो तुम्हें सब कुछ मिलेगा देखना
हर कली हर फूल कल फ़िर से खिलेगा देखना
फ़िर महकने - मुस्कुराने सी लगेगी जिंदगी
फ़िर खुशी के गीत गाने सी लगेगी जिंदगी
घोर तम हर हाल में हरना तुम्हारा काम है
"दीप "हो तुम रौशनी करना तुम्हारा काम है
पीर की काली निशा है आख़िरी से दौर में
अब समय ज्यादा नहीं है जगमगाती भोर में
देख लो नजरें उठाकर ,साफ दिखती है सुबह
देख लो अब जान कितनी सी बची है रात में
तुम कभी मायूस मत होना किसी हालात् में
हम चलेंगे ' आखिरी दम तक ' तुम्हारे साथ में
डॉ उदय 'मणि' कौशिक
23 जून 2008
Friday, August 8, 2008
मैं समय हूँ.. (जनकवि स्व विपिन 'मणि' की प्रतिनिधि कविता )
मैं समय हूँ कह रहा हूँ आँख खोलो
पग उठाओ और मेरे साथ हो लो
आज धरती पर तुम्हारी भूख के पौधे उगे हैं
लालची बादल अनेकों पर्वतों पे आ झुके हैं
आदमी की आँख मैं अब झांकती हैं नागफनियाँ
झर गयी निष्प्राण होकर देह की मासूम कलियाँ
कागजों से भर गयी है बरगदों की हर तिजोरी
घूमती काजल लगा कर आँख में महंगाई गोरी
मैं गगन से झांकता हूँ देख लो पलकें उठाकर
तोड़ दूँगा दर्प सबका एक दिन बिजली गिराकर
दुर्बलों की पीर से आँखें भिगोलो
मैं समय हूँ ,कह रहा आँख खोलो ....
चांदनी को दर्प था आकाश पर छाई हुई थी
झील के खामोश तट को नींद सी आयी हुई थी
फूल सब महके हुए थे क्यारियाँ चहकी हुई थी
शुक - पपीहा के स्वरों से डालियाँ बहकी हुई थी
धूल की लपटें लिए फ़िर एक दिन तूफ़ान आया
मौत का चेहरा भयानक त्रासदी को साथ लाया
पड़ गयी किरचें अनेकों साफ़ सुथरे दर्पणों पर
नाम मेरा ही लिखा था धुप से झुलसे वनों पर
मैल धोखे का ह्रदय से आज धोलो
मैं समय हूँ कह रहा हूँ आँख खोलो ...
वृक्ष के पत्ते हरे थे आज सब पीले हुए हैं
फूल थे सारे गुलाबी आज सब नीले हुए हैं
मैं समय हूँ देख लो तुम आज ये मेरा तमाशा
फ़ैल जायेगा अभी आकाश में कला धुआं सा
सोचता हूँ तुम घुटन में साँस कैसे ले सकोगे
कांपते हैं पांव मेरा साथ कैसे दे सकोगे
मील के पत्थर अनेकों देखते हैं राह मेरी
है अभी पुरुषार्थ तुममें ,थाम लो तुम बांह मेरी
साहसी हो , वीरता के शब्द बोलो
मैं समय हूँ ,कह रहा हूँ आँख खोलो
पग उठाओ और मेरे साथ हो लो
जनकवि स्व श्री विपिन 'मणि' '
Wednesday, August 6, 2008
Tuesday, August 5, 2008
किसी रोते हुए दिल को हँसाने का हुनर दे दे ...
अगर तू दे सके मेरी , दुआओं में असर दे दे
कभी इसके सिवा तुझसे न कोई चीज मांगेंगे
किसी रोते हुए दिल को हँसाने का हुनर दे दे
Monday, August 4, 2008
मुक्तक ...
माथे पे हिमालय के शिकन देख रहा हूँ
जम्हूरियत का दौर है क्या कह रहे है आप
मैं गोलियों के खूब चलन देख रहा हूँ .....
Sunday, August 3, 2008
कालजयी सृजन के पुरोधा एवं वरिष्ठ जनकवि 'बृजेन्द्र कौशिक जी 'को जन्मदिन पर ....सादर काव्यांजलि
दे रहे हैं आज सारे आपको शुभकामना
पूछिए मत किस कदर महकी हुई सी है हवा
है नशे में चूर सी , बहकी हुई सी है हवा
बादलों में इस तरह का दम कभी देखा न था
मुद्दतों से आज सा मौसम कभी देखा न था
लग रहा है आज जैसे हो कोई त्यौहार सा
दे रहे हों मेघ धरती को कोई उपहार सा
हाथ सब अपने उठाकर , सर झुकाकर आज सब
कर रहें हैं आपकी , लम्बी उमर की प्रार्थना ॥
आपके सब गीत - कविता हैं उजाले की किरण
आपके सब शब्द लाते हैं , अनूठा जागरण
आपके अक्षर सभी जलती मशालों की तरह
रौशनी इनकी वजह से है यहाँ पर सब जगह
जगमगाते हैं सितारे आपके विशवास पर
आप सूरज की तरह हो ,शब्द के आकाश पर
आप जैसा शब्द का साधक नहीं है दूसरा
है असंभव आप जैसी , शारदे की साधना
कर रहे हैं आज प्रेषित सब ह्रदय की भावना
दे रहे हैं आज सारे आपको शुभकामना