यहाँ के हर मुसाफिर को , मुहब्बत की डगर दे दे
अगर तू दे सके मेरी , दुआओं में असर दे दे
कभी इसके सिवा तुझसे न कोई चीज मांगेंगे
किसी रोते हुए दिल को हँसाने का हुनर दे दे
नव वर्ष २०२४
1 year ago
जनकवि स्व . श्री विपिन 'मणि' एवं विख्यात चिकत्सक और युवा रचनाकार डॉ . उदय 'मणि' कौशिक की उत्कृष्ट हिन्दी रचनाएँ ....
6 comments:
वाह वाह!! बहुत खूब!
वैसे सो भई इतने साल चिकित्सा क्षेत्र में बिताने के बाद अपना मन तो पत्थर हो चुका है...कविता सिर के ऊपर से निकल जाती हैं लेकिन दोस्त जैसी ये पंक्तियां आपने लिखी हैं, इस तरह की बात मैं बखूबी समझ लेता हूं.....और पढ़ कर लगता है कि कोई सूफी ही यह सब कुछ कह रहा है। पंक्तियां एक कागज पर नोट कर ली हैं...और कईं लोगों को सुनाऊंगा.....यह कह के मेरी अपनी नहीं है, चुराई हुई हैं...आप का नाम भी लिख लिया है।
वैसे यह मैंने कैसे लिख दिया कि ये पंक्तियां मेरी नहीं है, ये तो सारी कायनात की इबादत है....इस में मेरा-तेरा मैं कहां से ले आया।
बहरहाल, बहुत बहुत धन्यवाद।
aameen.......
खुशी और गम के आंसुओं में अंतर होता है खुशी के आंसू हमे हंसाते है लेकिन गम के आंसू हमे बीते दिनों की यादे दिला जाता है तो अपने लिए रोने से अच्छा है कि दूसरो के लिए रोए.
"कभी इसके सिवा तुझसे न कोई चीज मांगेंगे
किसी रोते हुए दिल को हँसाने का हुनर दे दे"
ऐसे शब्द सिर्फ़ एक "कवि" ही लिख सकता है, बार बार पढने लायक पंक्तियाँ हैं आपकी !
bhut hi badhiya.
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