फ़र्ज़ से की है मुहब्बत , फायदा हो या नहीं
फ़र्ज़ की खातिर कभी मैं , चैन से सोया नहीं
थी शिकस्ताँ हाल कश्ती , आंधियां थी पुरखतर
मैं ही था चलता रहा जो , हौसला खोया नहीं
मौजे दरिया मुख्तलिफ थी हर तरफ़ गिरदाब थे
मौत बिल्कुल रूबरू थी , फ़िर भी मैं रोया नहीं
हूँ सुखनवर बर्क़ से भी तेज है कुछ चल मेरी
जिंदगी का कोई लम्हा , बैठ कर खोया नहीं
है बहुत उनको तमन्ना उनको तुख्मे गुल मिले
केक्टस बोए जिन्होंने , तुख्मे गुल बोया नहीं
होके सूरज जुल्मतों का साथ दूँ मुमकिन नहीं
रौशनी ही बाँटता हूँ , तुम इसे लो या नहीं
चाहता था टालना फ़िर भी मगर आ ही गया
मेरे सर वो फर्ज भी , जो आपने ढोया नहीं
बात सच मने मेरी कोई ग़ज़ल गोया नहीं
शेख जी पी भी गए और , जाम तक धोया नहीं
खूब है दिल 'विपिन' का हौसला भी आफरीन
नागफनियों से ही खुश है , गुल इसे दो या नहीं
जनकवि स्व. विपिन ‘ मणि ‘
नव वर्ष २०२४
1 year ago