हर सिम्त लूट -मार ,गबन देख रहा हूँ
माथे पे हिमालय के शिकन देख रहा हूँ
जम्हूरियत का दौर है क्या कह रहे है आप
मैं गोलियों के खूब चलन देख रहा हूँ .....
नव वर्ष २०२४
1 year ago
जनकवि स्व . श्री विपिन 'मणि' एवं विख्यात चिकत्सक और युवा रचनाकार डॉ . उदय 'मणि' कौशिक की उत्कृष्ट हिन्दी रचनाएँ ....
6 comments:
जम्हूरियत का दौर है क्या कह रहे है आप
मैं गोलियों के खूब चलन देख रहा हूँ .....
यथार्थ..बेहतरीन मुक्तक।
***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत बढिया!!बेहतरीन मुक्तक है।
बेहतरीन मुक्तक.
बहुत सही है भाई. बहुत खूब.
जम्हूरियत के इस दौर में गालियों आैर गोलियों की ही उम्मीद करिए।
बहुत ही सुंदर मुक्तक । मुबारक हो ।
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