फ़र्ज़ से की है मुहब्बत , फायदा हो या नहीं
फ़र्ज़ की खातिर कभी मैं , चैन से सोया नहीं
थी शिकस्ताँ हाल कश्ती , आंधियां थी पुरखतर
मैं ही था चलता रहा जो , हौसला खोया नहीं
मौजे दरिया मुख्तलिफ थी हर तरफ़ गिरदाब थे
मौत बिल्कुल रूबरू थी , फ़िर भी मैं रोया नहीं
हूँ सुखनवर बर्क़ से भी तेज है कुछ चल मेरी
जिंदगी का कोई लम्हा , बैठ कर खोया नहीं
है बहुत उनको तमन्ना उनको तुख्मे गुल मिले
केक्टस बोए जिन्होंने , तुख्मे गुल बोया नहीं
होके सूरज जुल्मतों का साथ दूँ मुमकिन नहीं
रौशनी ही बाँटता हूँ , तुम इसे लो या नहीं
चाहता था टालना फ़िर भी मगर आ ही गया
मेरे सर वो फर्ज भी , जो आपने ढोया नहीं
बात सच मने मेरी कोई ग़ज़ल गोया नहीं
शेख जी पी भी गए और , जाम तक धोया नहीं
खूब है दिल 'विपिन' का हौसला भी आफरीन
नागफनियों से ही खुश है , गुल इसे दो या नहीं
जनकवि स्व. विपिन ‘ मणि ‘
नव वर्ष २०२४
1 year ago
8 comments:
कौशिक जी आज मैं अपना ये ब्लॉग देलेट कर रहा हूँ कृपया हमारे पहले ब्लॉग पर एक एक बार अवस्य विजित करें .
फ़र्ज़ से की है मुहब्बत , फायदा हो या नहीं
फ़र्ज़ की खातिर कभी मैं , चैन से सोया नहीं
थी शिकस्ताँ हाल कश्ती , आंधियां थी पुरखतर
मैं ही था चलता रहा जो , हौसला खोया नहीं
" first time read it, interesting to read , all the above lines of poetry are very motivating and inspiring"
Regards
शानदार ग़ज़ल।
kaushik ji...aapne hamare blog ko visit kiya aur hamein likha uske liya aapko.....dhanyawad....
aur aapki ye shandar gazal padhkar itna kah sakta hun....its awesome....
बहुत सुंदर!
मौजे दरिया मुख्तलिफ थी हर तरफ़ गिरदाब थे
मौत बिल्कुल रूबरू थी , फ़िर भी मैं रोया नहीं
हूँ सुखनवर बर्क़ से भी तेज है कुछ चल मेरी
जिंदगी का कोई लम्हा , बैठ कर खोया नहीं
wah bhaut bhaut sunder
har sher aag bhara hua aur josh bharta hua
kavita निश्चित ही सराहनीय है.
कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
great creation....
फ़र्ज़ से की है मुहब्बत , फायदा हो या नहीं
फ़र्ज़ की खातिर कभी मैं , चैन से सोया नहीं
bahot khub
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