" धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाए "
हर-इक फूल पत्ता कली खिलखिलाए
हवा प्यार के गीत से गुनगुनाए
नहा जाए हर इक जगह रोशनी से
धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाए ..
चेहरा सभी का दिखे मुस्कुराता
हर दिल खुशी के तराने सुनाता
कहीं पर ज़रा भी नहीं हो उदासी
कोई आँख दुख से नहीं छलछलाए
धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाए ..
झुके जिसके कारण नज़र ये शरम से
न ऐसा कोई काम हो जाए हम से
कोई बात ऐसी न निकले ज़ुबाँ से
ज़रा सा भी जो दिल किसी का दुखाए
धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाए ..
ग़रीबी न सपने सभी चूर कर दे
न महंगाई मरने पे मजबूर कर दे
न फिरकापरस्ती न नफ़रत की ज्वाला
न बेरोज़गारी कहीं सर उठाए
धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाए ..
डॉ. उदय 'मणि'
http:mainsamayhun.blogspot.com
नव वर्ष २०२४
1 year ago