कहूं गर आज महफ़िल मे , सहे कितने सितम दिल ने
नहीं मुमकिन बयां इसकी , सही मैं दासतां कर दू
हुआ नाकाम ही अक्सर , जहां की ठोकरें खाकर
न अब ये वक्त पे हंसता , न गम के दौर मे रोता
परेशां हूं मैं खुद इससे , करूं किससे गिला शिकवा
न ये दुनिया मेरी सुनती , न अब ये दिल मेरी सुनता
अगर टूटे हुये दिल का , नजारा खुद करे दुनिया
मैं धोकर जख्म अश्कों से जहां के रूबरू कर दूं
कहूं गर आज महफ़िल मे , सहे कितने सितम दिल ने
नहीं मुमकिन बयां इसकी , सही मैं दास्तां कर दू
पिलाया गम इसे अक्सर , सुकूं का नाम ले लेकर
सदा ही दर्द बख्शा है , इसे बेदर्द दुनिया ने
सताया आज तक इसको , वफ़ा का नाम ले लेकर
मिलाया खाक मे देखो , इसी बेदर्द दुनिया ने
यकीं आयेगा तब उनको , जो आंखें फ़ेर बैठे हैं
अगर मैं सामने उनके , शिकस्ता दिल अभी कर दूं
कहूं गर आज महफ़िल मे , सहे कितने सितम दिल ने
नहीं मुमकिन बयां इसकी , सही मैं दास्तां कर दूं
नव वर्ष २०२४
10 months ago
1 comment:
बहुत खूब, जनाब...
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