आज दर्द की प्रिया बनी हुयी है जिंदगी
अभाव की उडी पतंग , जिंदगी के गांव में
पल रही मुसीबते , बरगदों की छांव मे
आह भर रही बहार , पतझरों के द्वार पर
स्वार्थों के पेड से बंधी हुयी है जिंदगी
आज दर्द की प्रिया बनी हुयी है जिंदगी
धो रही नसीब आंख आंसुओं की धार से
बुला रही है पीर पास , धडकनो को प्यार से
कांपते हैं पांव ,सांस आखिरी सी ले रहे
मिलावटों के नाग की , डसी हुयी है जिंदगी
आज दर्द की प्रिया बनी हुयी है जिंदगी
उग रहे हैं शूल आज , जिंदगी की राह मे
बेबसी बदल गयी है रात के गुनाह मे
बह रहे हैं घाव , आह - सिसकियां लिये हुये
भूख की सलीब पर टंगी हुयी है जिंदगी
आज दर्द की प्रिया बनी हुयी है जिंदगी
पाप थपथपा रहा है , जिंदगी के द्वार को
पोलियो सा हो गया है , स्नेह के विचार को
आंधियों के काफ़िले ने पांव बांध से दिये
उलझनो की धूल मे सनी हुयी है जिंदगी
आज दर्द की प्रिया बनी हुयी है जिंदगी
नव वर्ष २०२४
1 year ago
3 comments:
बहुत सुन्दर गीत है।बधाई स्वीकारें।
जिन्दगी की सच्चाई को सामने रखने में सफल रचना। बधाई।
बाँटी हो जिसने तीरगी उसकी है बन्दगी।
हर रोज नयी बात सिखाती है जिन्दगी।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
डॉ. साहब,
बहुत ही अच्छी रचना है, भई. इन पंक्तियों ने मुझे खासा प्रभावित किया कहीं तो यह अपना ही हाल-ए-बयाँ लगता है :-
" आंधियों के काफ़िले ने पांव बांध से दिये
उलझनो की धूल मे सनी हुयी है जिंदगी "
पुनश्र्च बधाई.
मुकेश कुमार तिवारी
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