
था हवा को मोड़ने , का दम हमारे हाथ में
आज तक भी है वही दम-ख़म हमारे हाथ में
इस जगह पर है अँधेरा , तुम अभी से मत कहो
है अभी तक रौशनी , मद्धम हमारे हाथ में
हम जिधर चाहें वहां पर धूप हो ,बरसात हो
आगया है इस तरह , मौसम हमारे हाथ में
हौसला है आज भी जो ,फाड़ दे आकाश को
साँस बेशक रह गयी है , कम हमारे हाथ में
मर रहे हैं आज वो कैसे 'उदय' के नाम पर
आ गए पूरी तरह हम-दम , हमारे हाथ में
आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में
डॉ उदय 'मणि' कौशिक
आज तक भी है वही दम-ख़म हमारे हाथ में
इस जगह पर है अँधेरा , तुम अभी से मत कहो
है अभी तक रौशनी , मद्धम हमारे हाथ में
हम जिधर चाहें वहां पर धूप हो ,बरसात हो
आगया है इस तरह , मौसम हमारे हाथ में
हौसला है आज भी जो ,फाड़ दे आकाश को
साँस बेशक रह गयी है , कम हमारे हाथ में
मर रहे हैं आज वो कैसे 'उदय' के नाम पर
आ गए पूरी तरह हम-दम , हमारे हाथ में
आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में
डॉ उदय 'मणि' कौशिक
3 comments:
Bahut sunder. parantu pehale sher ki doosari pankti men matra dosh hai lafj jyada hain. Agar aisa likhen
ab tak bhee hai mojood wo hi dum humare hath men
इस जगह पे है अँधेरा , तुम अभी से मत कहो
है अभी तक रौशनी ,मद्धम हमारे हाथ में
समर्थ आत्मविश्वास झलकता है इन अल्फ़ाज़ में
vha bhut badhiya.
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