कोटा मे हुये तीन दिवसीय नाट्य समारोह का संचालन करते हुये, शहर मे एक ओडीटोरियम की माग के संदर्भ मे कुछ एक मुक्तक लिखने मे आये - देखियेगा
ये नाटक ये रंगकर्म तो ,
केवल एक बहाना है
हम लोगों का असली मकसद
सूरज नया उगाना है
कभी मुस्कान चेहरे से हमारे खो नहीं सकती
किसी भी हाल मे आंखें हमारी रो नही सकती
हमारे हाथ मे होंगी हमारी मंजिलें क्योंकि
कभी दमदार कोशिश बेनतीजा हो नही सकती
दुनियाभर के अंधियारे पे , सूरज से छा जाते हम
नील गगन के चांद सितारे , धरती पर ले आते हम
अंगारों पे नाचे तब तो , सारी दुनिया थिरक उठी
सोचो ठीक जगह मिलती तो , क्या करके दिखलाते हम
दिखाने के लिये थोडी दिखावट , नाटको में है
चलो माना कि थोडी सी बनावट , नाटकों मे है
हकीकत में हकीकत है कहां पर आज दुनिया मे
हकीकत से ज्यादा तो हकीकत , नाटको मे है
ये जमाने को हंसाने के लिये हैं
ये खुशी दिल मे बसाने के लिये हैं
ये मुखौटे , सच छुपाने को नहीं हैं
ये हकीकत को बताने के लिये हैं
डा. उदय ’मणि’ कौशिक
नव वर्ष २०२४
1 year ago
8 comments:
कभी मुस्कान चेहरे से हमारे खो नहीं सकती
किसी भी हाल मे आंखें हमारी रो नही सकती
हमारे हाथ मे होंगी हमारी मंजिलें क्योंकि
कभी दमदार कोशिश बेनतीजा हो नही सकती
Dr Sahab ,
skaratmak soch ki bhot sundar nazam kahi hai aapne....bhot bhot ..BDHAI....!!!
अद्भुत रचनाएँ हैं उदय जी एक से बेहतर एक....वाह...
नीरज
वाह-वाह..आपकी रचनाओं को पढ़ने के बाद सिर्फ जुबान से यही अल्फाज निकलते हैं। इसके आगे क्या बोलूं। उम्मीद नहीं यकीन है कि आगे भी रचनाओं पर वाह-वाह ही निकले
सुन्दर रजनाएँ, बधाई!
बहुत सुंदर ... दोनो रचनाएं अच्छी हैं ।
"कभी मुस्कान चेहरे से हमारे खो नहीं सकती
किसी भी हाल मे आंखें हमारी रो नही सकती
हमारे हाथ मे होंगी हमारी मंजिलें क्योंकि
कभी दमदार कोशिश बेनतीजा हो नही सकती"
इस उत्तम रचना के लिए बधाई...
मैंने हमेशा सकारात्मक विचार रखें हैं...
आपकी इन पंक्तियों से आनंद आ गया..
~जयंत
kabhi damdaar koshish benateeja ho nahi sakti............taareefekaabil
kabhi damdaar koshish benateeja ho nahi sakti............taareefekaabil
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