सादर अभिवादन
कल रात एक गज़ल के 4 - 5 शेर हुये हैं
सबसे पहले आप के साथ ही बांट रहा हू
देखियेगा ..
रोटी का चाहिये , न मुझे घर का चाहिये
लेकिन मुझे हिसाब, कटे सर का चाहिये
कमतर से दोस्ती मे शिकायत नहीं मुझे
दुश्मन तो मगर मुझको,बराबर का चाहिये
ऐसी लहर उठाये जो दुनिया को हिला दे
दर्जा अगर किसी को , समन्दर का चाहिये
बदला है क्या बताओ, संभलने के वास्ते
हमको सहारा आज भी, ठोकर का चाहिये
उनसे कहो कि हमको बुलाया नहीं करें
जिनको तमाशा मंच पे , जोकर का चाहिये
सादर
डा. उदय मणि
नव वर्ष २०२४
1 year ago
4 comments:
bahut badhiya gajal
उदय जी बधाई...क्या खूब ग़ज़ल हुई है...हर शेर बहुत खूबसूरती से तराशा गया है और मुकम्मल है...खास तौर पर ये शेर तो सुभान अल्लाह हैं:
कमतर से दोस्ती मे शिकायत नहीं मुझे
दुश्मन तो मगर मुझको,बराबर का चाहिये
बदला है क्या बताओ, संभलने के वास्ते
हमको सहारा आज भी, ठोकर का चाहिये
नीरज
उनसे कहो कि हमको बुलाया नहीं करें
जिनको तमाशा मंच पे , जोकर क चाहिये
-आपने आज के मंच पर गहरी चोट की है, वाह!!
बदला है क्या बताओ, संभलने के वास्ते
हमको सहारा आज भी, ठोकर का चाहिये
waah bahut khub
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